मैंने साईं मुखड़ा देख लिया
मैंने झुकके माथा टेक दिया
सुबह शुभ मुहर्त लाई है
सांझ को साईं बेला छाई है
मैंने रात को देखा सपना था
कोई खडा सिरहाने अपना था
जब नींद खुली तो कोई नहीं
रात भर ऑंखें सोई नहीं
ख्वाबो में आई परछाई थी
बाबा शिर्डी वाले साई की
मुझको बोले मंदिर आना
मुझे भजन कव्वाली सुनाना
मुझे हुआ ज़रा विश्वास नहीं
सपना था साईं नाथ नहीं
शंका ने मुझको घेर लिया
बुद्धि मन मेरा फेर दिया
सोचा मन को वहम हुआ
साईं मूरत को ज्यों ही छुआ
मूरत में दिख गए साईं जी
परमेश्वर की परछाईं जी
मेरी आँखों से आंसू बहने लगे
मुझे लोग दीवाना कहने लगे
मैंने साईं दर्श को पाया है
मेरे सर पर साईं का साया है
मैं गीत साईं के गाने लगा
हर रोज मंदिर जाने लगा
मैं ध्यान साईं का करता हूँ
मैं ज्ञान से झोली भरता हूँ
मैं काकड़ आरती सुनता हूँ
दिखों से सुख को बुनता हूँ
जब साईं ने स्नान किया
मैंने अमृत रस का पान किया
जब साईं ने पहनी नई चादर
मैंने दुश्मन को भी दिया आदर
जब मुकुट साईं के सर पे सजा
मेरा अंतर मन तब नाच उठा
दोपहर की होती जब आरती
तब ऑंखें साईं को निहारती
संध्या आरती की आई बेला
लगा रे भक्तो का मेला
रात्री बेला में शेजा आरती
निद्रा साईं दासता स्वीकारती
नीम की ठंडी छाया है
सुख चैन जहा समाया है
साईं द्वारकामाई माता है
यहाँ ज्ञान सहज मिल जाता है
चावड़ी माई विधाता है
भक्तों का लगता ताँता है
धुनी में जल गए पाप मेरे
धुँआ बन उड़ गए संताप मेरे
उदी ने रोग मिटा डाले
लगा माथे थोडी खाले
पालकी सबको पालती है
जो गिरे उन्हें सम्भालती है
आकाश में चमका चंदा है
शिरड़ी का चंदा तो नंदा है
साईं का चूल्हा जलता है
पेट सभी का पलता है
साईं के हाथों का सटका
दुश्मनों को जिसने है पटका
साइन समाधि में सोए हैं
भक्तों के संग हँसे रोए है
जो साईं नाम गुण गायेगा
वो परम शांति को पाएगा
जो साईं आरती गायेगा
वो अवगुण दूर भगायेगा
जो साईं आरती उतारेगा
वो अपने भाग सवाँरेगा
जो साईं स्नान करायेंगे
उनके पाप धुल जायेंगे
जो साईं की चादर चढायेंगे
वो दुर्भाग्य दूर भगायेंगे
जो साईं को माला पहनायेंगे
वो दुनियाँ में आदर पायेंगे
जो साईं को इत्र लगायेंगे
वो घर आँगन मह्कायेंगे
जो साईं को दक्षिणा चढायेंगे
वो दरिद्रता दूर भगायेंगे
जो साईं को भोग लगायेंगे
वो सुख भोगते जायेंगे
जो साईं का लंगर लगायेंगे
वो भंडारे भरते जायेंगे
जो साईं का भजन करायेंगे
वो कष्टों से मुक्ति पायेंगे
जो साईं हवन घर में करते
वो पाप ताप श्राप हरते
जो साईं नाम से दान करे
वो झोली में धन-धान भरे
जो साईं लीला सुनाता है
वो भय से मुक्ति पाता है
जो साईं सच्चरित्र को पढ़ते हैं
वो सदा सत्कर्म करते हैं
जो साईं सेवा करते हैं
वो बुरे कर्म से डरते हैं
जो नित साईं मंदिर आएगा
वो सदा शुभ फल पाएगा
जो साईं द्वार पर झुकता है
वो प्राणी ऊँचा उठता है
जो साईं मंदिर बनायेंगे
वो साईं दास हो जायेंगे
जो दुखियों पर उपकार करे
उसे साईं बाबा प्यार करे
जो निंदा से बचते है
वो मीठे फल को चखते है
जो नेक कमाई करते हैं
वो नित एक भलाई करते हैं
पाप कमाई दुःख देती हैं
सुख चैन को छीन लेती हैं
जो साईं सुख शान्ति मंत्र जपे
उसके सब काम साईं सिद्ध करें
कलयुग में साईं अवतारे
भक्तों को भव से उबारे
राजेंद्र सेमवाल वो लिखता
जो साईं कृपा से है दिखता
Written By : Sai Bhakt Rajendra Semwal, Puja Publication, New Delhi