Whosoever reads this Sai Satcharitra in poetry or mantra form daily with patience, devotion and faith will get the desired results as one gets by reading Sai Satcharitra.

शिरडी आगमन हुओ तुम्हारो
म्हाल्सापति साईं नाम उच्चारो
तू अनंत तोरी कथा अनंता
बिन तोरी कृपा कह सकहूँ न संता
गेहूँ चक्कियन माँ पीसत साईं
दुष्कर्मन फल बच नहीं पाहीं
शिरडी नगर आटे से बंधायो
महामारी सों भक्तन को बचायो
बुद्धि विलक्षण देखि साईं नाथा
नाम "हेमाडपंत" पावे दासा
वाको अनुग्रह स्वीकार जो कीन्हा
पूर्ण "साईं सत चरित्र" तू कीन्हा
आन बसे जाके मन माहीं
जगे नूर ताकि छवि माहीं
भाग्य बड़े जिन शरण यह पाई
उन ते अधिक न कोऊ सुहाई
तुम्हारी कथा क्या कोई सुनावे
जो तेरो बने तुझको पावे
जिन भक्तन को तेरी आसा
तेरे उन दासों का मैं दासा
जिनके ह्रदय बसें साईं नाथा
कोऊ अमंगल ढिंग नहीं आता
बाबा तुम तो धाम करुणा के
तुम ही हरत दारुण दुःख जग के
हौ जो अधम, कुटिल अरु कामी
खेवट जानि तारो मोहे स्वामी
रूप सहस्त्र साईं धरि आये
जित देखऊ तित तुम्ही समाये
जिनके ह्रदय बसहूँ तुम बाबा
उनको कोऊ दुःख दर्द ना व्यापा
जस लोभी को धन नहीं बिसरहीं
ऐसी ही दशा तुम हम ही करहीं
जन्म सफल भयो आजहू मोरा
कृपा पाई गुण लिखवहू तोरा
दरस तुम्हारो इक बार जो पावे
लख चौरासी उसकी कट जावे
शिरडी गाँव को बनि रखवारो
नीम तले निज डेरा डारो
काका की भक्ति पहिचानो
स्वयं ही विठल रूप दिखायो
राम कृष्ण दोनों तुम्हीं हो
शिव हनुमंत प्रभु तुम्हीं हो
दत्तात्रेय अवतार तुम्हीं हो
पीर पैगम्बर रहमान तुम्हीं हो
नानक रूप धरि तुम आये
सच्चा सौदा कर दिखलाए
साईं चरणन महूँ तीरथ सारे
विस्मित होय गणु नीर बहाए
गोली बुवा ने विठल पाई
शिरडी ही पंढरपुर कहलाई
ते नर अंधकार है साईं
जिन्ह ये पादुका नाही पाई
पानी संग यों दीप जलाये
भक्तन भीड़ उमड़ती आए
दृष्टि तुम्हारी कोऊ ऊँच न नीचा
शिर्डी पूरी को प्रेम सौं सींचा
गुरु महिमा तूने खूब बताई
स्वयं शिष्य भए रीति बताई
हिन्दू मुस्लिम सब ही मिलाए
राम नवमी अरु उर्स मनाए
साईं साईं सप्रेम उच्चारो
जप तप साधन सबही बिसारो
जो तोरी शरणागत हुआ दाता
अन्न धन वस्त्र आजीवन पाता
साईं राम साईं राम जबही पुकारा
रोम रोम पुल्कित भयो हमारा
साईं देत कोधीयन को काया
भागो जी को भी अपनाया
तुम नर रूप में ऐसे आए
जूठे फल शबरी के खाए
तुमने पीर सही भक्तन की
और बढ़ी आस्था निज जन की
कोऊ ना जान सकत यह माया
केही कारण यह वेश बनाया
बालक एक बचावन न्याईं
धूनि में हाथ डार दियो साईं
कोऊ करि सकत नहीं चतुराई
सबको मालिक एक बताई
ममता की तुम मूरत बाबा
हर बालक इक छाँव है पाता
सब जग ने जाको ठुकराया
ताको तूने सहज अपनाया
बडें भाग्य मानुष तन पावा
और उस पर तुम सों अनुरागा
मुझ सौं बडो कौन बडभागी
बसत रही उर छवि अनुरागी
नहीं समान तुमसा कोऊ देवा
स्वीकारो अविलम्ब यह सेवा
जब तोरि प्रीत बढ़त है साईं
जग माहीं कछु सूझत नाहीं
तोरि प्रीत ने सुधि बिसराई
विष सम जीवन तुम बिन साईं
द्वार द्वार तूने भिक्षा मांगी
दान को अर्थ सिखावन लागी
तुम्हरी अवज्ञा करी जिन देवा
यात्रा मा दुःख पायो अनेका
हर्षित चित साईं भेंट मंगावे
निज भक्तन को पेडा खावें
साईं साईं रट रसना लागी
पंच चोर फिरहीं भय भागी
आवागमन सों मुक्त कर दीन्हा
तुझ को हिय जिन्ह धारण कीन्हा
प्रलय काल को रोक लगायो
भक्तों को भय मुक्त करायो
शिर्डी में जो झंझावत आयो
एक ही गरज में शांत करायो
बहुत देवियाँ शिर्डी माईं
नहीं प्रकटी नहीं भई सहाई
साईं तुम्हारी अद्भुत लीला
जड़ चेतन नभ भा अनुकूला
धूनि की लपट प्रचंड भई जब ही
सटके प्रहार सो शांत हुई तब ही
जग तारण ही प्रकट भए साईं
दुष्ट जनन सों प्रीति दिखाई
जोई जिस भाव सौं तुझको द्यावा
उसको वैसो ही रूप दिखावा
अग्निहोत्री शास्त्री जो आया
अपने गुरु को दर्शन पाया
सादो रूप बनायो ऐसो
जिन्ह देखें लगे अपने जैसों
स्वप्न ही मा क्षयरोग भगायो
भीमा ह्रदय पाषाण घुमायो
भीमा जी निज गाँव जो आयु
साईं सत्य व्रत नयो चलायो
जो नर पग धरे शिर्डी धामा
संभव होऐ असंभव कामा
साईं तुम्हरो द्वार है आल्हा
जो चाहा संभव कर डाला
देखा भक्ति का ढंग निराला
शक्करमय मिला चाय का प्याला
तुम्हरे सन्मुख भक्त जो आता
ब्रह्म ज्ञान वो सहज ही पाता
धन्य धन्य वो धरती माता
अवतारे जहां साईं नाथा
तूने श्रमिक को दी मजदूरी
चाकर जानि दो श्रद्धा सबूरी
शुभ कर्मन फल उदीत भा मोरा
जो यह दुर्लभ धाम लखि तोरा
जाको तोही पर दृढ विश्वासा
उन्हीं पाई अपनी अभिलाषा
तुम्हरे वचन परम सुखदाई
श्रवण करी श्रध्हा उपजाई
जो करही इन चरणन सेवा
पायहीं श्रद्धा सबुरी को मेवा
प्रेम तुम्हारा कछुवी नाईं
हम बालक तुम हमरी माई
जो जन तुम्हरी ओर निहारी
तुम भी रहे उन्हीं ओर निहारी
तुम रहे ध्यान को मर्म बतावत
मार्ग भक्ति अति सरल करावत
हाँ मूरख खल निपट गंवारी
कैसे गुण कह सकहूँ तुम्हारी
तुम हो अगम अगोचर नाथा
जान सकहूँ ना तुम्हारी गाथा
यों तो सब देवन को अराधा
तुम समान कोऊ मिला ना दाता
तुम को कोटि-कोटि प्रणामा
तृप्त होए पायो विश्रामा
भक्ति की रीति सुलभ कर दीन्हीं
नवधा भक्ति की दक्षिणा दीन्हीं
ऋण मांगत रही द्वारका माई
भक्तन हेतु धुनि साईं जलाई
जा पर कृपा करहीं साईं नाथा
सर्पकाल सौं मुक्ति पाता
पंचम शब्द सौं विष उतरायो
सर्पदंश सौं शामा बचायो
योग शास्त्र को आयो जो ज्ञ्नाता
मन में संशय कर पछताता
अहम् समर्पित जब हीं करहीं
मन योगी भयो जानहूँ तबहीं
बलि हेतु तूने अस्त्र मंगाया
सबक अहिंसा का सिखलाया
शंका निवारण हेतु जो आता
समाधान वो तुरन्त ही पाता
काशी राम व्यवसाय सौं आवत
बाबा सन्मुख सब धन बिखरावत
बाबा एक चवन्नी लेकर
सारा धन वापिस लौटावत
बहुत दिना बीते जब यूहीं
काशी राम मन ही मन सोचहीं
मेरो धन ओरन में बंटाई
इसमें इनकी कवन बढ़ाई
अन्तर्यामी बाबा ने फिर
लीनी उसकी सफल कमाई
निर्धन भयो जब काशी भाई
चतुराई कछु काम ना आई
सागर दया के साईं जी ने
बरखा धन की फिर बरसाई
कौन है दाता कौन भिखारी
उसको सारी समझ है आई
कभी क्रोधित हो पटके सटका
हर्षित हों विनोद करें सबका
सब जानत हो तुम त्रिपुरारी
होनी टारी भव दुःख निवारी
ब्रिज गोपियन संग रास रचाई
सिमगा दिनां पूरन पोली खिलाई
करुणा सिन्धु तुम मैं हूँ अभागा
निज स्वार्थ तोहे भजने लागा
लखि स्वार्थ नहीं तजियो नाथा
हम हौं भिखारी तुम हो मेरे दाता
धुप गाँव सौं चाँद भाई आता
घोडी की खोज में कुछ उलझा सा
पात्र कृपा चुनि चाँद पुकारा
घोडी मिली बनो दास तुम्हारा
जो भी तुम्हारी स्तुति गाये
बिन मांगे सब कुछ पा जाये
तुम उदार अरु पर उपकारी
संपत्ति दीन्ही अरु शोक निवारी
रामदासी इक हठी था साईं
शामा हेतु तित पोथी चुराई
द्रवित हुये लखी भक्त ही पीरा
अपने हाथ सों करते सेवा
मेघा का भ्रम दूर तू कीन्हा
शिव शंकर का त्रिशूल दीन्हा
भक्तन के तुम सदा रखवारे
डोर सों खीचत निज बैठारे
धुनी की अनल भस्म करी सुला
ता मैं जल जायें पाप समूला
जिनके ह्रदय में ढ्रद विश्वासा
हस्त की रेखा बदली नाथा
ज्योतिष कुण्डलियाँ सब फिकवाई
सब ग्रह तुमसे ही गतियाँ पाई
तुम्हरी आस ह्रदय जिन माही
सफल परीक्षा में हो जाहीं
भजन मंडली इक शिर्डी आई
धन को उपार्जन लक्ष्य थो साईं
भक्ति भाव हिय नारी आई
सीता पति लखि नाची माई
नर भरमायो पूछत साईं
पाप जला दो तृण की नाईं
नमस्कार जब पुनि पुनि करहीं
आस्था भेद बतायो तब हीं
यही जीवन चरणन न पखारूँ
तो यह जन्म व्यर्थ हुआ जानूं
मुझ पापी को तुम ही तारो
जानि अजामल मोहे उबारो
तुम्हरो एक वैशिष्टय यह साईं
पाप कर्म फल जले तृण नाईं
साईं भक्ति मुक्ति का द्बारा
काटेहिं बंध बघियन को तारा
व्रत उपवास कछु काम ना आवे
केवल साईं साईं प्रभुहि मिलावे
जिस घर तुम हो आन विराजे
उससे विपदा दूर ही भागे
संजीवनी समान उदी तुम्हरी
धारण करे हरे दुःख सगरी
जो कोई तुम्हे सप्रेम पुकारे
पवन वेग सम आन पधारे
घोड़ा गाड़ी जामनेर लायो
अपने करम को ही रूप दिखायो
मैना के घर प्रगटे साईं
सुत पायो मैना हर्षाई
वो तोहे प्रिय साईं परम स्नेही
निज नयनन छवि निरखत तेरी
शामा भयाहू को रोग भगायो
आस्था सो ही जीवन पायो
कर जोरे शामा कहे मोरे साईं
यह तोरी लीला समझ ना आईं
प्रथम हमें भयभीत कराई
तत्क्षण भय सों मुक्त कराई
मुम्बई शहर सों महिला आई
पीरा प्रसव सों मुक्ति पाई
असहय होई नासूर की पीरा
पिल्ले जी भयो अति अधीरा
काका सों सन्देश जो पायो
अपने वचन को याद करायो
शल्य चिकित्सक बनकर आयो
अब्दुल को पग काग बनायो
रीती निदान अलग तोरी साईं
दस जन्मन फल कटे क्षण माई
जोई जिस भाव पग सीढ़ी धरता
वैसे ही रूप में साईं मिलता
बाबा तुम घट घट में समाये
बीज रहित फल ठक्कर पाये
जस मोरा हाथ थाम तुम लीन्हा
सबही को सरल बना दो जीना
जोई जोई मांगत सोई सोई पाता
चमत्कार हर पल दिखलाता
बहुत है तुम्हरो नाम साईं बाबा
हमरी भी सुनियो जीवन गाथा
पालकी यूं भक्तों ने सजाई
बाबा की बारात ज्यों आई
चिलम को कर कमलों में सजाया
बंसी ज्यूं मोहन ने बजाया
ग्यारह वचन निभावन ताईं
समाधि मंदिर दी बनवाई
तुम तो हो ब्रह्माण्ड के नायक
दुःख हरता सब भान्ति सहायक
जेहि सरिता मिली सागर माहीं
तेहि सब धर्म तोमे आन समाहीं
सब ग्रंथन तोमे सार समाया
ज्ञानेश्वरी को पाठ पढाया
उऋण बायजा माई को कीन्हा
तात्या को तुम जीवन दीन्हा
तुम मैं है ब्रह्माण्ड समाया
अद्भुत है यह तेरी माया
ऐसी समाधि तूने लगाई
तुझ सा कोई नहीं मेरे साईं
रक्षा हेतु जब तुम्हें पुकारा
सात समुन्दर पार पधारा
वीर चैनब में बैर समायो
सर्प मेंढक की योनी पायो
संरक्षक साईं पिता आयो
दोनों को मतभेद मिटायो
तुम्हरी महिमा तुम ही जानो
अनुभव करो सत्य पहिचानो
हौं अपराध करत नित जाऊ
उपकारी तुम चित न धाराओं
जिन तोरे वचन सुने धरि धीरा
उनकी हरी तुम्हीं ने पीरा
तेरे दरस की प्यास नयन को
दर्श दिखा शीतल कर हिय को
जो धरे ध्यान अरु तुम्हें पुकारे
बंधू सखा सब उसके तारे
एक ही अरज करूं साईं नाथा
देऊ आशीष नहीं छूटे ही नाता
यह तोरी कृति संजीवनी समाना
जीवन दान मिले सुनी धर ध्याना
नित्य पढ़ही जिन्ह ह्रदय राखि
मंगल भये अमंगल भागी
बिनु कारण कृपालु भये साईं
"बंधू" नित साईं कृति ध्याई
ॐ अनंतकोटि ब्रह्माण्डनायक राजाधिराज
योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज की जय
इति श्री साईं नाथ कृति सम्पूर्ण
म्हाल्सापति साईं नाम उच्चारो
तू अनंत तोरी कथा अनंता
बिन तोरी कृपा कह सकहूँ न संता
गेहूँ चक्कियन माँ पीसत साईं
दुष्कर्मन फल बच नहीं पाहीं
शिरडी नगर आटे से बंधायो
महामारी सों भक्तन को बचायो
बुद्धि विलक्षण देखि साईं नाथा
नाम "हेमाडपंत" पावे दासा
वाको अनुग्रह स्वीकार जो कीन्हा
पूर्ण "साईं सत चरित्र" तू कीन्हा
आन बसे जाके मन माहीं
जगे नूर ताकि छवि माहीं
भाग्य बड़े जिन शरण यह पाई
उन ते अधिक न कोऊ सुहाई
तुम्हारी कथा क्या कोई सुनावे
जो तेरो बने तुझको पावे
जिन भक्तन को तेरी आसा
तेरे उन दासों का मैं दासा
जिनके ह्रदय बसें साईं नाथा
कोऊ अमंगल ढिंग नहीं आता
बाबा तुम तो धाम करुणा के
तुम ही हरत दारुण दुःख जग के
हौ जो अधम, कुटिल अरु कामी
खेवट जानि तारो मोहे स्वामी
रूप सहस्त्र साईं धरि आये
जित देखऊ तित तुम्ही समाये
जिनके ह्रदय बसहूँ तुम बाबा
उनको कोऊ दुःख दर्द ना व्यापा
जस लोभी को धन नहीं बिसरहीं
ऐसी ही दशा तुम हम ही करहीं
जन्म सफल भयो आजहू मोरा
कृपा पाई गुण लिखवहू तोरा
दरस तुम्हारो इक बार जो पावे
लख चौरासी उसकी कट जावे
शिरडी गाँव को बनि रखवारो
नीम तले निज डेरा डारो
काका की भक्ति पहिचानो
स्वयं ही विठल रूप दिखायो
राम कृष्ण दोनों तुम्हीं हो
शिव हनुमंत प्रभु तुम्हीं हो
दत्तात्रेय अवतार तुम्हीं हो
पीर पैगम्बर रहमान तुम्हीं हो
नानक रूप धरि तुम आये
सच्चा सौदा कर दिखलाए
साईं चरणन महूँ तीरथ सारे
विस्मित होय गणु नीर बहाए
गोली बुवा ने विठल पाई
शिरडी ही पंढरपुर कहलाई
ते नर अंधकार है साईं
जिन्ह ये पादुका नाही पाई
पानी संग यों दीप जलाये
भक्तन भीड़ उमड़ती आए
दृष्टि तुम्हारी कोऊ ऊँच न नीचा
शिर्डी पूरी को प्रेम सौं सींचा
गुरु महिमा तूने खूब बताई
स्वयं शिष्य भए रीति बताई
हिन्दू मुस्लिम सब ही मिलाए
राम नवमी अरु उर्स मनाए
साईं साईं सप्रेम उच्चारो
जप तप साधन सबही बिसारो
जो तोरी शरणागत हुआ दाता
अन्न धन वस्त्र आजीवन पाता
साईं राम साईं राम जबही पुकारा
रोम रोम पुल्कित भयो हमारा
साईं देत कोधीयन को काया
भागो जी को भी अपनाया
तुम नर रूप में ऐसे आए
जूठे फल शबरी के खाए
तुमने पीर सही भक्तन की
और बढ़ी आस्था निज जन की
कोऊ ना जान सकत यह माया
केही कारण यह वेश बनाया
बालक एक बचावन न्याईं
धूनि में हाथ डार दियो साईं
कोऊ करि सकत नहीं चतुराई
सबको मालिक एक बताई
ममता की तुम मूरत बाबा
हर बालक इक छाँव है पाता
सब जग ने जाको ठुकराया
ताको तूने सहज अपनाया
बडें भाग्य मानुष तन पावा
और उस पर तुम सों अनुरागा
मुझ सौं बडो कौन बडभागी
बसत रही उर छवि अनुरागी
नहीं समान तुमसा कोऊ देवा
स्वीकारो अविलम्ब यह सेवा
जब तोरि प्रीत बढ़त है साईं
जग माहीं कछु सूझत नाहीं
तोरि प्रीत ने सुधि बिसराई
विष सम जीवन तुम बिन साईं
द्वार द्वार तूने भिक्षा मांगी
दान को अर्थ सिखावन लागी
तुम्हरी अवज्ञा करी जिन देवा
यात्रा मा दुःख पायो अनेका
हर्षित चित साईं भेंट मंगावे
निज भक्तन को पेडा खावें
साईं साईं रट रसना लागी
पंच चोर फिरहीं भय भागी
आवागमन सों मुक्त कर दीन्हा
तुझ को हिय जिन्ह धारण कीन्हा
प्रलय काल को रोक लगायो
भक्तों को भय मुक्त करायो
शिर्डी में जो झंझावत आयो
एक ही गरज में शांत करायो
बहुत देवियाँ शिर्डी माईं
नहीं प्रकटी नहीं भई सहाई
साईं तुम्हारी अद्भुत लीला
जड़ चेतन नभ भा अनुकूला
धूनि की लपट प्रचंड भई जब ही
सटके प्रहार सो शांत हुई तब ही
जग तारण ही प्रकट भए साईं
दुष्ट जनन सों प्रीति दिखाई
जोई जिस भाव सौं तुझको द्यावा
उसको वैसो ही रूप दिखावा
अग्निहोत्री शास्त्री जो आया
अपने गुरु को दर्शन पाया
सादो रूप बनायो ऐसो
जिन्ह देखें लगे अपने जैसों
स्वप्न ही मा क्षयरोग भगायो
भीमा ह्रदय पाषाण घुमायो
भीमा जी निज गाँव जो आयु
साईं सत्य व्रत नयो चलायो
जो नर पग धरे शिर्डी धामा
संभव होऐ असंभव कामा
साईं तुम्हरो द्वार है आल्हा
जो चाहा संभव कर डाला
देखा भक्ति का ढंग निराला
शक्करमय मिला चाय का प्याला
तुम्हरे सन्मुख भक्त जो आता
ब्रह्म ज्ञान वो सहज ही पाता
धन्य धन्य वो धरती माता
अवतारे जहां साईं नाथा
तूने श्रमिक को दी मजदूरी
चाकर जानि दो श्रद्धा सबूरी
शुभ कर्मन फल उदीत भा मोरा
जो यह दुर्लभ धाम लखि तोरा
जाको तोही पर दृढ विश्वासा
उन्हीं पाई अपनी अभिलाषा
तुम्हरे वचन परम सुखदाई
श्रवण करी श्रध्हा उपजाई
जो करही इन चरणन सेवा
पायहीं श्रद्धा सबुरी को मेवा
प्रेम तुम्हारा कछुवी नाईं
हम बालक तुम हमरी माई
जो जन तुम्हरी ओर निहारी
तुम भी रहे उन्हीं ओर निहारी
तुम रहे ध्यान को मर्म बतावत
मार्ग भक्ति अति सरल करावत
हाँ मूरख खल निपट गंवारी
कैसे गुण कह सकहूँ तुम्हारी
तुम हो अगम अगोचर नाथा
जान सकहूँ ना तुम्हारी गाथा
यों तो सब देवन को अराधा
तुम समान कोऊ मिला ना दाता
तुम को कोटि-कोटि प्रणामा
तृप्त होए पायो विश्रामा
भक्ति की रीति सुलभ कर दीन्हीं
नवधा भक्ति की दक्षिणा दीन्हीं
ऋण मांगत रही द्वारका माई
भक्तन हेतु धुनि साईं जलाई
जा पर कृपा करहीं साईं नाथा
सर्पकाल सौं मुक्ति पाता
पंचम शब्द सौं विष उतरायो
सर्पदंश सौं शामा बचायो
योग शास्त्र को आयो जो ज्ञ्नाता
मन में संशय कर पछताता
अहम् समर्पित जब हीं करहीं
मन योगी भयो जानहूँ तबहीं
बलि हेतु तूने अस्त्र मंगाया
सबक अहिंसा का सिखलाया
शंका निवारण हेतु जो आता
समाधान वो तुरन्त ही पाता
काशी राम व्यवसाय सौं आवत
बाबा सन्मुख सब धन बिखरावत
बाबा एक चवन्नी लेकर
सारा धन वापिस लौटावत
बहुत दिना बीते जब यूहीं
काशी राम मन ही मन सोचहीं
मेरो धन ओरन में बंटाई
इसमें इनकी कवन बढ़ाई
अन्तर्यामी बाबा ने फिर
लीनी उसकी सफल कमाई
निर्धन भयो जब काशी भाई
चतुराई कछु काम ना आई
सागर दया के साईं जी ने
बरखा धन की फिर बरसाई
कौन है दाता कौन भिखारी
उसको सारी समझ है आई
कभी क्रोधित हो पटके सटका
हर्षित हों विनोद करें सबका
सब जानत हो तुम त्रिपुरारी
होनी टारी भव दुःख निवारी
ब्रिज गोपियन संग रास रचाई
सिमगा दिनां पूरन पोली खिलाई
करुणा सिन्धु तुम मैं हूँ अभागा
निज स्वार्थ तोहे भजने लागा
लखि स्वार्थ नहीं तजियो नाथा
हम हौं भिखारी तुम हो मेरे दाता
धुप गाँव सौं चाँद भाई आता
घोडी की खोज में कुछ उलझा सा
पात्र कृपा चुनि चाँद पुकारा
घोडी मिली बनो दास तुम्हारा
जो भी तुम्हारी स्तुति गाये
बिन मांगे सब कुछ पा जाये
तुम उदार अरु पर उपकारी
संपत्ति दीन्ही अरु शोक निवारी
रामदासी इक हठी था साईं
शामा हेतु तित पोथी चुराई
द्रवित हुये लखी भक्त ही पीरा
अपने हाथ सों करते सेवा
मेघा का भ्रम दूर तू कीन्हा
शिव शंकर का त्रिशूल दीन्हा
भक्तन के तुम सदा रखवारे
डोर सों खीचत निज बैठारे
धुनी की अनल भस्म करी सुला
ता मैं जल जायें पाप समूला
जिनके ह्रदय में ढ्रद विश्वासा
हस्त की रेखा बदली नाथा
ज्योतिष कुण्डलियाँ सब फिकवाई
सब ग्रह तुमसे ही गतियाँ पाई
तुम्हरी आस ह्रदय जिन माही
सफल परीक्षा में हो जाहीं
भजन मंडली इक शिर्डी आई
धन को उपार्जन लक्ष्य थो साईं
भक्ति भाव हिय नारी आई
सीता पति लखि नाची माई
नर भरमायो पूछत साईं
पाप जला दो तृण की नाईं
नमस्कार जब पुनि पुनि करहीं
आस्था भेद बतायो तब हीं
यही जीवन चरणन न पखारूँ
तो यह जन्म व्यर्थ हुआ जानूं
मुझ पापी को तुम ही तारो
जानि अजामल मोहे उबारो
तुम्हरो एक वैशिष्टय यह साईं
पाप कर्म फल जले तृण नाईं
साईं भक्ति मुक्ति का द्बारा
काटेहिं बंध बघियन को तारा
व्रत उपवास कछु काम ना आवे
केवल साईं साईं प्रभुहि मिलावे
जिस घर तुम हो आन विराजे
उससे विपदा दूर ही भागे
संजीवनी समान उदी तुम्हरी
धारण करे हरे दुःख सगरी
जो कोई तुम्हे सप्रेम पुकारे
पवन वेग सम आन पधारे
घोड़ा गाड़ी जामनेर लायो
अपने करम को ही रूप दिखायो
मैना के घर प्रगटे साईं
सुत पायो मैना हर्षाई
वो तोहे प्रिय साईं परम स्नेही
निज नयनन छवि निरखत तेरी
शामा भयाहू को रोग भगायो
आस्था सो ही जीवन पायो
कर जोरे शामा कहे मोरे साईं
यह तोरी लीला समझ ना आईं
प्रथम हमें भयभीत कराई
तत्क्षण भय सों मुक्त कराई
मुम्बई शहर सों महिला आई
पीरा प्रसव सों मुक्ति पाई
असहय होई नासूर की पीरा
पिल्ले जी भयो अति अधीरा
काका सों सन्देश जो पायो
अपने वचन को याद करायो
शल्य चिकित्सक बनकर आयो
अब्दुल को पग काग बनायो
रीती निदान अलग तोरी साईं
दस जन्मन फल कटे क्षण माई
जोई जिस भाव पग सीढ़ी धरता
वैसे ही रूप में साईं मिलता
बाबा तुम घट घट में समाये
बीज रहित फल ठक्कर पाये
जस मोरा हाथ थाम तुम लीन्हा
सबही को सरल बना दो जीना
जोई जोई मांगत सोई सोई पाता
चमत्कार हर पल दिखलाता
बहुत है तुम्हरो नाम साईं बाबा
हमरी भी सुनियो जीवन गाथा
पालकी यूं भक्तों ने सजाई
बाबा की बारात ज्यों आई
चिलम को कर कमलों में सजाया
बंसी ज्यूं मोहन ने बजाया
ग्यारह वचन निभावन ताईं
समाधि मंदिर दी बनवाई
तुम तो हो ब्रह्माण्ड के नायक
दुःख हरता सब भान्ति सहायक
जेहि सरिता मिली सागर माहीं
तेहि सब धर्म तोमे आन समाहीं
सब ग्रंथन तोमे सार समाया
ज्ञानेश्वरी को पाठ पढाया
उऋण बायजा माई को कीन्हा
तात्या को तुम जीवन दीन्हा
तुम मैं है ब्रह्माण्ड समाया
अद्भुत है यह तेरी माया
ऐसी समाधि तूने लगाई
तुझ सा कोई नहीं मेरे साईं
रक्षा हेतु जब तुम्हें पुकारा
सात समुन्दर पार पधारा
वीर चैनब में बैर समायो
सर्प मेंढक की योनी पायो
संरक्षक साईं पिता आयो
दोनों को मतभेद मिटायो
तुम्हरी महिमा तुम ही जानो
अनुभव करो सत्य पहिचानो
हौं अपराध करत नित जाऊ
उपकारी तुम चित न धाराओं
जिन तोरे वचन सुने धरि धीरा
उनकी हरी तुम्हीं ने पीरा
तेरे दरस की प्यास नयन को
दर्श दिखा शीतल कर हिय को
जो धरे ध्यान अरु तुम्हें पुकारे
बंधू सखा सब उसके तारे
एक ही अरज करूं साईं नाथा
देऊ आशीष नहीं छूटे ही नाता
यह तोरी कृति संजीवनी समाना
जीवन दान मिले सुनी धर ध्याना
नित्य पढ़ही जिन्ह ह्रदय राखि
मंगल भये अमंगल भागी
बिनु कारण कृपालु भये साईं
"बंधू" नित साईं कृति ध्याई
ॐ अनंतकोटि ब्रह्माण्डनायक राजाधिराज
योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज की जय
इति श्री साईं नाथ कृति सम्पूर्ण
Sex dating in liberty south carolina, [url=http://dating-berryton.vvsspeed.com/]dating berryton[/url]. Radiocarbon dating.
ReplyDeleteLouisville ky dating. Sex dating in opheim montana, [url=http://bbw-dating-site-web.vvsspeed.com/]bbw dating site web[/url].
Sex dating in palmers crossing mississippi, [url=http://dating-mequon.vvsspeed.com/]dating mequon[/url]. Dating gering.
Jackson michigan dating. Dating stowmarket, [url=http://dating-myakka-city.vvsspeed.com/]dating myakka city[/url].
Dating guadalupita, [url=http://dating-reisterstown.vvsspeed.com/]dating reisterstown[/url]. Single parent and dating feelings.